एक नया वर्ष / देवदास छोटराय

देवदास छोटराय, 67, कवि, गीतकार, अपने गृहनगर कटक के प्रति अनन्त प्रेम। कविताओं, कहानियों ,गीतों के अतिरिक्त फिल्मों के लिए लेखन।
प्रकाशित पुस्तकें;:- नील सरस्वती लाल,मछ,हटी सजकरा
सम्मान;:- ओडिया फिल्म “इंद्रधनुर छाई (इंद्रधनुष की छाया)” जिसे सन 1995 में कान फिल्म समारोह में प्रदर्शित किया गया था ,उसकी पटकथा के लिए अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित । रोमांटिक लेखन के लिए बहु प्रशंसित।
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(अभी तक मेरे जीवन में सिवाय कुछ भ्रामक किताबों और एक धोखेबाज लड़की को छोड़कर कुछ भी नहीं था। हर दिन मैं उसके सफ़ेद झूठ सुनता और सारी रात सरासर अहंकार से किताबें पढ़ता। रात गहराती जाती। मेरी थकी-मांदी आँखों को सड़क की नियोन-लाइटें बड़े संतरे की तरह नजर आने लगती। और उस झूठी चमक के साथ दूसरा दिन शुरू होता। काश! मुझे यह पता होता कि झूठ बोलने की आदत पर केवल उसका ही विशेषाधिकार नहीं है, बल्कि उसकी दादी माँ की जीभ पर भी हर समय झूठ चिपका रहता है।)
इकतीस दिसम्बर मेरे लिए बहुत ही कष्टकारक है, नहीं तो, क्यों मैं अपने आपको इतना लाचार महसूस करता? और पहली जनवरी मुझे डराती। मुझे उस दिन सूरज का सामना करने में भी डर लगता है। कौन जानता है कि कोई ताजा दुर्भाग्य वहाँ घात लगाए बैठा हो .। मैं बहुत अंधविश्वासी हूँ। मैं बिलकुल भी 'नई सालों' को नहीं मनाता हूँ।
शायद कोई भी आदमी साल के आखिरी दिन का इस तरह क्रूरतापूर्वक बदला नहीं लेता होगा। (इकतीस दिसम्बर की शाम खत्म होने जा रही है।) दिसम्बर का महीना यादों से भरा है। कई सालों से जिससे मैं ईर्ष्या करता हूँ, जिसको मैं दूसरे दिन तक नफरत करता हूँ, और जो मेरे शर्म का इतिहास बन गया हो, मैं उसे क्यों आज तक इतना याद करता हूँ? देखो, आज रात कटक का बाजार कितना खूबसूरत सजा है! हर दुकान के अंदर अहानिकर दर्पण चकाचौंध कर रहे हैं। सारी खिड़कियों को खुला छोड़ दिया गया है (एक बेरहम सर्दी होने के बावजूद भी)। भीड़ से खचाखच भरी सड़कों पर लोग अपने जीवन में पहली और आखिरी बार एक दूसरे पर भरोसा करते है। केवल कुछ ही घंटों के बात है। नया वर्ष आने वाला है!
जब शहर की सबसे बड़ी घड़ी में बारह बार डंके बजेंगे, जेल के परिसर में फूलों से लदे पेड़ घबराने लगेंगे, मुख्य द्वार खोला जाएगा और नया साल चमकीले साफ कपडों में कटक-शहर में प्रवेश करेगा। उसके बाद यह नया साल सड़कों और गलियों के दोनों तरफ हर किसी से हाथ मिलाते हुए घूमने लगेगा। “मैं नया साल हूँ। चलो, एक दूसरे से परिचय कर लें। आपसे मिलकर बहुत खुशी हुई। मैं तुम्हारी अच्छी किस्मत की कामना करता हूँ;!”
फिर दहशत भरी मेरी आवाज,- “ दरवाजा बंद करो। पुलिस थाने में प्राथमिकी दर्ज करवाओ। . क्या तुम्हें पता नहीं, मूर्ख नागरिकों, नया साल अपनी जेब में क्या ला सकता है? अब इस बार प्लेग और प्लेग, हर जगह प्लेग होगा”
मैंने कुछ भी नहीं कहा। मैंने केवल पार्क में फूलों की तरफ देखा, जेल के अंदर के फूलों को देखा और बक्सी बाजार की तरफ चला गया। केवल युवा लोग सड़क पर टहल रहे थे। हालांकि लड़कियां सावधानी से लड़कों के करीब चल रही थी मानों सारी वर्जनाओं को तोड़ने का यही सही समय है। मेरे मन में उनके बारे में कोई अनैतिक विचार नहीं आया। मैं चुपचाप बक्सी बाजार चला आया। हैरत की बात थी, मेरे दोस्तों में से कोई भी वहाँ नहीं था , जबकि मुश्किल से तीन घंटे बचे थे नए साल के आगमन के लिए। केवल पुराने घरों और बक्सी बाजार की दुकानों के चमकदार लैंपों की चकाचौंध। कटक के किसी भी चौराहे पर बक्सी बाज़ार का पता पूछ सकते हैं, लेकिन कोई आदमी बक्सी बाजार में खड़ा होकर यह नहीं पूछ सकता कि कटक कहाँ है। बक्सी बाजार में कटक की सारी दूरियां समाप्त हो जाती हैं। और उसके बाद, फिर वहाँ से एक नए कटक की शुरूआत होती है। इस प्रकार सारी चिर-परिचित दूरियाँ नुआ बाजार और तुलसीपुर चौक में धुएं में उड़ जाती है।
मैं वहाँ अकेले खड़ा था, केवल मैं। तब तक मेरे दोस्तों में से कोई भी वहाँ नहीं पहुंचा था या फिर वे शहर के फांसी के तख्ते पर नए साल का इंतजार कर रहे थे, बक्सी बाजार को भूलकर? लेकिन गुस्सा होने की क्या बात थी? मैं वहाँ खड़ा था अकेले, अनिश्चित काल से इंतज़ार करते। मैं वहाँ नए साल का स्वागत करता। मैं वहाँ इंतजार करता और देखता कि क्या वह मुझ पर मेहरबान भी है या नहीं। सड़क के चौराहे पर सर्दी जल्दी भाग गई। हवा मेरी गर्दन पर चाकू के तेज धार की तरह लगने लगी। लड़कों ने अपनी शर्ट के बटन लगा दिए। लड़कियां इतनी बातें कर रही थी कि उनकी गर्दन पर नीली नसें साफ दिख रही थी। चिन्मयी अंतहीन बातें करती जा रही थी। केवल झूठ!
चिन्मयी मुझसे इतने सारे झूठ क्यों बोलती हैं? क्यों उसने एक बुरे सपने की तरह अनंत काल के लिए मेरी नींद बर्बाद कर दी है;! उसके अनगिनत पत्र और अंतहीन झूठ भूत की तरह मैं भूल नहीं पाया। मैं तुम्हें खुद से अधिक प्यार करती हूँ, कितनी बार लिखा था उसने;! अगर कोई उन्हें जोड़ पाता तो शायद बक्सी- बाज़ार से नोट्रे डेम के बासीलीक तक लंबा खींचा जाता। यह उसके झूठ का दायरा था।
मुझे थकान लग रही थी। जूते की दुकान पर घड़ी में साढ़े दस बज रहे थे। अगले डेढ़ घंटे के बाद। और उसके बाद, नया साल इस सड़क पर एक राजकुमार की तरह गुजरेगा। पीछे-पीछे केवल युवा लड़के और लड़कियां। वे जानते हैं कि उनके लिए क्या शुभ है। वे नए साल की शुरूआत को एक दूसरे के चेहरे देखेंगे। 'थोड़ी देर प्रतीक्षा करो, मेरी तरफ देखो, मैं तुम्हारे चेहरे की झलक देखकर अपने नए साल की शुरुआत कर रहा हूँ, तुम अब से मेरे लिए हमेशा दर्पण बन जाओगी, आदि। मैं अपना नया साल कैसे शुरू करता?
मेरे दोस्त अभी तक नहीं आए। वे मुझे आज इस तरह कैसे अकेले छोड़ सकते है! चिन्मयी मुझे यह कहकर चिढ़ाएगी कि मैं एक अच्छा जोरू का गुलाम बन सकता हूँ। शादी के बाद मैं कभी अकेले नहीं रह सका (उसका मतलब उसके बिना)। केवल चिन्मयी को मुझे आज रात देखना होगा! (कोई फर्क नहीं पड़ता, चिन्मयी, मैं कुछ और साल अकेले रहूँगा और अंत में, हम निश्चित रूप से नरक में मिलेंगे।) जाने-अनजाने कुछ और समय बीत गया। हर जगह पटाखों की रोशनी दिखाई दे रही थी। इतनी तेज रोशनी की जरूरत कहाँ थी? क्या वे आज रात मेरी मूर्खता की जयंती मना रहे हैं?
साल के अंत में ज्यादा तेज रोशनी की वजह से अवश्य मैं बहुत पीला दिख रहा हूंगा, अन्यथा क्यों हेमा मालिनी अपना रिक्शा चारों तरफ घुमाकर कई महीनों के बाद मुझे मिलने आती?
हेमा मालिनी! नहीं, उसके परिचय के लिए आपको इंतजार करना होगा।
रिक्शे में हेमा मालिनी काफी उम्र-दराज दिखाई दे रही थी, जैसे लिविंग रूम के किसी कोने में बहुत समय से रखे हुए एक फूल की तरह। वह रिक्शे से नीचे नहीं उतरी। वहीं बैठे -बैठे उसने मेरा अभिवादन किया, 'नमस्कार',।
मैंने बदले में कुछ भी उत्तर नहीं दिया। बेफिक्र उसने कहा, 'मैं जानती थी कि तुम यहाँ पर होंगे.'
मैंने पूछा, 'क्यों?'
उसने कहा, 'अरे वाह;! इस बात को मैं अपने कॉलेज के दिनों से जानती हूँ। तुम हमेशा शाम को यहाँ आते थे और पान की दुकान पर खड़े रहते थे। हमारे कॉलेज में हर लड़की को यह बात पता थी।”
मैंने मन ही मन कहा, “ हेमा मालिनी, तुम तब तक कटक नहीं छोड़ोगी जब तक तुम मर नहीं जाती? '
वह थोड़ा मुस्कराई और कहने लगी, 'तुम एक कायर हो, तुम अपने आप को आज तक माफ नहीं कर सकते हो। '
उसे किसी भी प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं थी। एक छोटे से फूल की तरह मेरे होठों पर चुप्पी छाने लगी। वहाँ पास में कोई भी नहीं था। मैंने ऊपर आसमान में उगते चाँद को देखा। शायद वह हेमा मालिनी के रोग़न चढ़े नाखूनों पर दिख रहा था। वह हमेशा की तरह असामान्य रूप से सुंदर और मोटी दिख रही थी। बस वही शरीर जिसे देखकर खून अक्षम्य घृणा से भर जाता था।
वह समझ सकती थी। उसने मेरी तरफ देखकर कहना जारी रखा, 'तुम अब यहाँ कभी भी अकेले खड़े नहीं रहोगे। तुम बहुत कमजोर दिख रहे हो, एक छोटे बच्चे की तरह। बहुत ही असहाय;!”
एक पल के लिए, मेरे दिल में दर्द की टीस उठ गई। क्या हेमा मालिनी को मेरी दुखती राग पर हाथ रखना ही आता है?
मैंने शांत लहजे में कहा, 'हेमा मालिनी, तुमने एक बार भी मुझे चिन्मयी के बारे में नहीं पूछा? '
हेमा मालिनी का उज्ज्वल चेहरा एक क्षण के लिए बदल गया। वह एक पल के लिए उदास हो गई। मैं यह जानता था। वह नहीं बदली है। जब भी उसे चिन्मयी का नाम सुनाई देगा, वह अपनी ईर्ष्या व्यक्त किए बिना सिकुड़ने लगेगी। मैंने जानबूझ कर अपने तुरुप के इस पत्ते को खेला यह कहते हुए, 'चिन्मयी हमेशा मुझसे झूठ बोलती है, सच में, लेकिन किसी ने भी कभी मुझसे इतने सुंदर झूठ नहीं कहे थे। '
रक्त की एक बूंद की तरह नीरवता उसके होठों पर थिरक गई। पहली बार शाम को मैं आराम महसूस कर रहा था। यहाँ रोशनी इतनी चमकदार थी और उसके गाल इतने गोरे थे कि उसकी आंखों के आंसू और ज्यादा उन पर चमक रहे थे।
आह भरते हुए उसने कहा, 'मैं जा रही हूँ। आप के लिए नया वर्ष शुभ हो। और अब हम कभी नहीं मिलेंगे। वह वास्तव में बहुत बूढ़ी लग रही थी, एक बेहद लंबे समय से बैठक कक्ष में रखे फूलदान में ठीक एक फूल की तरह।
उसका रिक्शा दूर चला गया।
नहीं, इससे पहले कि वह रिक्शा चला जाता, मैं उसके पीछे दौड़ा। उसने नरमी से कहा, 'नहीं, अब और नहीं, मैं बहुत थक गई हूँ।'
किशोर लड़कियों ने अविश्वसनीय तेज गति से मुझे खुले में पीछे छोड़ दिया।
मैं अचानक अंग्रेजी में चिल्लाने लगा;: “क्या तुम्हें अपने बहुमंजिले मकान की एकमात्र सीढ़ी याद है? एक बार दोपहर में तीन बजे मैंने तुमसे एक कदम नीचे बैठ कर तुम्हारी चिकनी पिंडली को चूमा था। तुम काफी चौंक गई थी और वहीं नीचे बैठ गई।
हेमा मालिनी ने दुर्बल-स्वर में कहा, “ मुझे पता है कि तुम बदला लेने में अव्वल रहे हो। आज इस नए साल की पूर्वसंध्या पर भी तुम मुझे नहीं छोड़ोगे? ”
मैंने कहना जारी रखा, “असल में, तुम उन विदेशी कपड़ों में विदेशी लग रही थी। और वे सभी कपड़े जो तुम पहनती थी, इस शहर के लिए नए थे। जब तुम एलआईसी कार्यालय के सामने अपने स्कूल जाती, सभी बाबू बाहर निकालकर बरामदे में तुम्हें घूरने लगते।” ...
हेमा मालिनी ने इस बार अपना आपा खो दिया और कहने लगी, 'मैं तुमसे हाथ जोड़कर विनती करती हूँ, यह सब बकवास अब बंद करो।”
मुझे पता नहीं क्यों, मैं मूक-दर्शक होकर अपना पक्ष रखने लगा, “ प्लीज, तुम मुझे छोडकर मत जाना। वास्तव में, आज रात बहुत असहाय महसूस कर रहा हूँ। मैं अकेले इस नए साल को सहन नहीं कर सकता हूँ। प्लीज,मेरे साथ रहो। ”
बिना एक शब्द बोले वह मेरी तरफ देखने लगी और जूता दुकान की घड़ी फिर से टिकटिक करने लगी। साढ़े ग्यारह बज रहे थे। आधे घंटे के बाद, नया साल सभी सितारों से नीचे उतरेगा।
मैंने कहा, “मुझसे वादा करो, तुम मुझे निराश नहीं करोगी।”
हेमा मालिनी की झील जैसी गहरी आंखों में वास्तव में दुख मंडराने लगा । वह मन ही मन बुदबुदाने लगी, “मैं लंबे समय से भगवान को भूल गई हूँ। कई वर्षों बाद, मैं उसे याद दिला रही हूँ। यह सड़क है, नहीं तो, मैं तुम्हें बिना छूए नहीं रह पाती। लेकिन मैं इस समय और ज्यादा बाहर नहीं रह सकती। ”
मैंने कहा, 'क्या तुम्हें वह खिड़की याद है जिसे तुम हर मौसम में मेरे लिए खुला रखती थी? अब तुम जा सकती हो, मगर बारह बजे वह खिड़की अवश्य खुला रखना। नए साल के आगमन पर मैं वहाँ खड़ा रहूँगा। मैं तुम्हारे चेहरे पर उसे देखकर उसके आगमन का जश्न मनाऊँगा।”
चुपचाप खड़ी हेमा मालिनी ने पूछा, “क्या तुम सच में आओगे?”
मैंने कहा, “निश्चित रूप से आऊँगा। केवल तुम वह खिड़की खुली रखना और वहाँ खड़ी रहना। कहीं ऐसा न हो कि नववर्ष के धोखे में तुम्हारा उज्ज्वल चेहरा मेरी नजरों से ओझल हो जाए।”
आखिरकार हेमा मालिनी का रिक्शा मैंने छोड़ दिया। सारे दर्द, दुनिया की सारी नफरत पहली बार समाप्त हो जाएगी, या अगले और पच्चीस मिनट में खत्म हो जाएगी।”
अब तक मेरा पूरा शरीर सड़क की तरह उजाड़ हो गया था। युवा लड़कियां, जो बरामदे और बालकनी में गपशप कर रही थी, अपने-अपने घरों के अंदर चली गई। केवल घरों की छतें रोशनियों के बगीचे की तरह लग रही थी।
हेमा मालिनी का घर बहुत दूर था। केवल पच्चीस मिनट बचे थे उस खिड़की तक पहुँचने में। क्या मैं पागल हो गया था?
मुझे पता है कि हेमा मालिनी अब क्या कर रही होगी। वह सड़क पर रो रही होगी। घर पहुंचकर सबसे पहले वह आईने में अपना चेहरा देखेगी। वह बार-बार दीवार घड़ी की ओर ताकती रहेगी। जब वह अपनी बंद खिड़की खोलेगी, मुझे यकीन है कि बहुत समय के बाद उसे थोड़ी शर्म लगेगी।”
मैं चलने लगा। धीरे – धीरे बक्सी बाज़ार पीछे छूटता गया और इसके साथ पिछले सात वर्षों के दर्द भी। मैं बक्सी बाजार और कभी नहीं आऊँगा। मैं जानी पहचानी उस गली में खड़ा था, जहां एक बड़ी सड़क मिलती है और कुछ दूर वहाँ से एक और संकीर्ण गली शुरू होती है,जिसमें हेमा मालिनी का घर है। अगर मैं हेमा मालिनी से शादी कर लेता तो क्या बुरा हो जाता?
मगर यह बात बहुत पुराने जमाने की है। यह उन दिनों की कहानी है, जब किसी के चरित्र पर लगे दाग बड़े दिलकश होते थे। चिन्मयी के साथ मेरे संबंधों की चर्चा सारे शहर में फैल गई थी। एक आज्ञाकारी बच्चे की तरह मैं उसके झूठ सुनता था। तब से मैंने हेमा मालिनी की तरफ नजर उठाकर भी नहीं देखा।
एक दोपहर, हेमा मालिनी अपनी गाड़ी में आई और कहने लगी, “ मुझे तुमसे कुछ कहना है।”
उसने मुझे कठजोड़ी पुल पर पूछा, “ मुझे बताओ, तुम्हें कौनसा रंग सबसे ज्यादा पसंद है? फेयर या डार्क? ”
मैंने विस्मय-भरी दृष्टि से उसकी तरफ देखा।
अपनी साँसे थामे उसने कहा, “मुझे पता है, डार्क। ”
हेमा मालिनी हमेशा से अभिमानी थी। वह कभी भी चिन्मयी का नाम अपने मुंह से नहीं लेती थी। चिन्मयी साँवली थी, मगर उसका सांवला रंग इतना खूबसूरत था कि रात की तरह मादक लगती थी।
तब भी मैंने कुछ नहीं कहा। सारे पुल पर धूप पारदर्शी कांच के ठीकरे की तरह गिर रही थी। सूरज हेमा मालिनी के गोरे गालों की तुलना में ज्यादा साफ था। यह मेरे लिए घृणित बात थी।
उसने कहना जारी रखा, “ अगर तुम सोच रहे हो कि मैं तुमसे प्यार करती हूँ, तो यह बहुत बड़ी भूल होगी।”
मैंने उसकी तरफ घूरकर देखा।
हेमा मालिनी ने अचानक इतनी ज़ोर से चिल्लाना शुरू किया कि ड्राइवर पीछे मुड़कर उसे देखने लगा। मेरे लिए यह अप्रत्याशित-सा था। रोते-रोते वह कहने लगी, “ भगवान की सौगंध, मेरा विश्वास करो। मैं तुमसे प्यार नहीं करती, लेकिन मुझे तुम्हारे पिता से प्यार है। काश;! मेरा जन्म चालीस साल पहले हुआ होता। तो मैं केवल उनसे ही शादी करती। तुम्हें मुझ पर दया आती है। ”
उसका यह चौंकाने वाले बयान था। यहां तक कि मेरी सारी रक्त कोशिकाएं ठंडी पड गई। मैं अपने आप को संभाल नहीं पा रहा था। यह समझ भी नहीं पा रहा था कि कबसे हेमा मालिनी के मन में इस तरह की अजीबोगरीब धारणा पैदा हो गई। कार काठजोड़ी पुल पर बहुत दूर जाकर रूकी। सड़क के दोनों किनारों से कई देवदार के पेड़ गुलामी भरी निगाहों से देखने लगे।
हेमा मालिनी ने खुद को नियंत्रित किया। फिर थोड़ी मुस्कराई और कहने लगी, “ मगर तुम ऐसे नहीं हो जैसे तुम्हारे पिताजी। मैंने सुना है, तुम्हारी उम्र में उनका शरीर बहुत तगड़ा था। उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी और राष्ट्रवादी आंदोलन के दौरान जेल गए। मुझे यह भी पता है कि उन्हें छात्रावास से निष्कासित कर दिया गया था क्योंकि उन्होंने अधीक्षक-कार्यालय की खिड़की तोड़ दी थी। वह बहुत क्रोधी स्वभाव के है, नहीं है? लेकिन मुझे तुनुकमिजाज वाले लोग बहुत अच्छे लगते है।“ उसके बाद,उसके चेहरे पर गहरी उदासी नज़र आने लगी और एक गहरी सांस लेते हुए वह कहने लगी, “वास्तव में, मैं तुम्हारे पिता से बहुत प्यार करती हूँ। जितना भी संभव हो सकेगा, मैं उनके साथ रहूँगी। कृपया मेरी उनसे शादी करवा दो।”
मैंने कहा, “हेमा मालिनी, भगवान का शुक्र है। दुनिया में कोई भी हमारी बातचीत नहीं सुन रहा है। मेरे पिता शादीशुदा है और मेरी माँ अभी जिंदा है। भले ही, मैं नरक में विश्वास नहीं करता हूँ, लेकिन मुझमें नफरत करने की भयंकर क्षमता है।”
उसने कहना जारी रखा, “ मुझे नहीं पता, पुनर्जन्म होता भी है? मैं तुम्हारे पाँव पड़ती हूँ। कृपया, इस जीवन में मुझे यह अवसर दे दो।”
चुप्पी धारण करने के अलावा उस समय मेरे पास क्या उत्तर होता? मुझे तो यह भी पता नहीं था कि कार किस तेज गति से आगे बढ़ रही थी। तेज धूप, भुवनेश्वर की सड़क और उस दिन की हेमा मालिनी की वास्तविकता पर मुझे विश्वास नहीं हो रहा था। ऐसा लग रहा था मानो किसी ने साफ-सुथरे आकाश पर रहस्य का एक पतला ग्राफ बिछा दिया हो।
हेमा मालिनी ने मेरी तरफ देखकर अपनी आँखें नीचे झुकाई। फिर मेरी तरफ देखते हुए खुल कर पूछने लगी, “ क्या तुम मुझसे शादी नहीं करोगे?”
मैंने कहा, “नहीं”
उसने कहा, “कारण?”
मैंने कहा, 'तुम मुझ पर विश्वास करोगी? तो मैं तुम्हें सब-कुछ सच- सच बता दूँगा।”
उसने नजरों से हामी भरी।
मैंने कहा, “ हेमा मालिनी, मुझे तुम्हारा नाम पसंद नहीं हैं। तुम्हारे पाँच अक्षर वाले इस नाम का मैं तिरस्कार करता हूँ। मेरी नफरत का खास कारण यह है।”
वह मुस्कुराकर कहने लगी, “ तुम अच्छी तरह से बात कर सकते हो। इस शहर की आधी लड़कियों को यह पता है।”
मैंने कहा, 'भगवान की सौगंध, मैं सच कह रहा हूँ। काश! तुम्हारा नाम कुछ और होता। शायद मैं सहन कर पाता? '
उसने कहा, 'ठीक है, मैं अपना नाम बदल दूँगी। यदि आवश्यकता पड़ी तो एक हलफनामा भी भर दूँगी। बताओ, तुम मुझे किस नाम से पुकारना चाहोगे ......, मीरा, जूलिया, कल्याणी... '
मैंने कहा, 'चीजें इतनी आसान नहीं है। मुझे तुम्हारी माँ का नाम याद है – ‘नक्षत्रमालिनी’। यह तो तुम्हारे नाम से लंबा और ज्यादा घटिया है। उसे भी बदलोगी।'
हेमा मालिनी अब अनकहे दर्द से बिलबिला उठी, मानो ब्रह्मांड के सारे दुखों की गाज उस पर गिर पड़ी हो। वह कहने लगी, ' मैं नहीं जानती –तुम मेरा मज़ाक उड़ा रहे हो। अगर यह सही है तो उसकी भी एक हद होती है। जब मैं कान्वेंट में पढ़ती थी, तब मैंने एक लघु कहानी पढी थी। एक बार तेंदुए का मेमने से सामना हो गया, "तुमने पिछले साल मेरे पीने के पानी को गंदा क्यों किया?” मेमने ने उत्तर दिया, "तुम यह क्या कह रहे हो? मैं तो पिछले साल पैदा भी नहीं हुआ था।" तेंदुए ने कहा," तब जरूर, तुम्हारी माँ ने किया होगा। "
मैंने कुछ भी नहीं कहने की कसम खाई। अजीब पीली धूप और आंसुओं की बहती धारा की तरह चमचमाती सड़क पर हम भुवनेश्वर की ओर जा रहे थे। ड्राइवर सीधे आगे देख रहा था। फूलनखरा पर मैं अचानक नीचे उतर गया ... हेमा मालिनी ने भी कोई विरोध नहीं किया।
इस मीटिंग के बाद, ये क्षण असीम आनंद में बदल गए। वर्ष का अन्त। मैंने अपनी घड़ी की ओर देखा और भौचक्का रह गया। केवल छह मिनट बचे थे आधी रात होने में। इधर मेरा मन विचारों की उधेड़-बुन में फंसा हुआ था, मगर मेरे कदम हेमा मालिनी के घर की तरफ खिंचते चले गए। सड़क के दोनों ओर छायादार पेड़, ऊँघते रिक्शा-चालक और जागते आवारा कुत्ते नजर आ रहे थे। मैं उन्हें पीछे छोड़ते जा रहा था। केवल पन्द्रह गज की दूरी और बची थी हेमा मालिनी की खिड़की तक पहुँचने के लिए। हेमा मालिनी ने अपना वचन निभाया। तीन मंजिला इमारत में केवल उसकी खिड़की खुली थी। नए साल के आने की अप्रत्याशित याद में यह सारी रात खुली रह सकती है। दूसरी ओर, हेमा मालिनी इंतजार कर रही होगी। उसकी लंबी छाया सड़क पर दिखने लगी। खिड़की से मीठी सुबह की तरह उजाला हो रहा था।
मैं चुपचाप लैंप पोस्ट के नीचे खड़ा रहा। पूरी गली मालती फूलों की माला की तरह लाचार लग रही थी। कुत्ते का पिल्ला कुछ समय के लिए मेरे पास रूका और फिर चला गया। मैंने फिर से अपनी घड़ी में देखा। केवल तीन मिनट बाकी थे और उसके बाद नया साल होगा। मैंने फैसला किया कि मैं किसी तरह की आवाज नहीं करूंगा। मगर ठीक बारह बजे उसकी खिड़की के सामने जाकर खड़ा रहूँगा। सारी गली सो रही थी। कहीं कोई रोशनी नहीं थी। किसी पास वाले घर की खुली खिड़की से एक सफेद मच्छरदानी दिखाई दे रही थी। नया वर्ष उनकी संतुष्ट नींद के कंबल को आराम से स्पर्श करेगा। हेमा मालिनी के मुग्ध चेहरे की एक झलक पाकर ही मैं अपने नए साल की शुरूआत करूंगा। उसके बाद, मेरी माँ के चेहरे को छोड़कर सारी चीजें मेरे लिए नई होंगी।
केवल एक मिनट बाकी था। शायद उससे भी कम। केवल कुछ सेकंड। मैं धीरे-धीरे आगे बढ़ता गया। खिड़की की रोशनी से हेमा मालिनी की हिलती डुलती छाया सुनसान रात में इधर -उधर घूमती नजर आने लगी।
अरे! यह क्या है? अचानक खिड़की से रोशनी गुल हो गई। किसी ने धीरे से खिड़की के शीशे बंद कर दिए। मैं छलांग लगाकर वहाँ पहुँचा। किसी ने खिड़की को दूसरी ओर से बहुत धीरे से बंद कर दिया।
चंद्रमा की श्वेत-धवल चाँदनी में हेमा मालिनी के गोरे -गोरे हाथ साफ दिखाई दे रहे थे। उसने मुझे अवश्य देखा होगा। एक मूक आदमी के होठों की तरह खिड़की के दरवाजे बंद थे। जहां तक मुझे याद आ रहा है, अपने गोरे हाथों से उसने बंद किए थे। अवश्य, उस समय बारह बज रहे होंगे। कहीं दूर से नए साल की सलामी देने के लिए पहली तोप दागी गई। फिर दूसरी। फिर तीसरी। उसके बाद पटाखों की आवाज। मैं आसमान की ओर देखने लगा। सारा आकाश लाल, नीले और हरे रंग के सितारों से भरा हुआ था। और प्रत्येक तारे से नया साल नीचे उतर रहा था। हेमा मालिनी की तीन मंजिला इमारत कहीं दूर कोहरे के अंदर खो गई। सर्दी निडर हवा का लबादा पहने मुझे धकेलने लगी। शहर में कहीं-कहीं सारी रात चलने वाले क्लबों में एंटीक ग्रामोफोन बजने लगे। हेमा मालिनी की खिड़की अभी भी बंद थी। रेलवे-लेवल क्रॉसिंग या गोरा कब्र – (अंग्रेजों का कब्रिस्तान), प्राचीन कटक शहर का मुख्य दरवाजा अभी खुलना चाहिए। गार्ड नए साल को सलामी देकर स्वागत करेंगे।
अचानक मैं बहुत डर गया। इससे पहले कि मैं दूर चला जाता, मुझे फिर से हेमा मालिनी के पीले हाथ याद आने लगे। वे हाथ एक पुरानी सीढ़ी वाले पुल से मेल खाते थे। जैसे किसी गहरी खाई के ऊपर एक पुल था, और इससे पहले कि मैं उसे पार करता। वह दूसरी तरफ खींच लिया गया। एक तरफ मैं खड़ा था और दूसरी ओर हेमा मालिनी धुंध में लुप्त होती हुई। और दोनों के बीच काला हिलोरे खाता जल।
धीरे-धीरे मैंने चलना शुरू किया। हेमा मालिनी ने मेरे कदमों की आहट सुनी होगी। मुझे नहीं पता था कि वह रोएगी या नहीं। यदि वह रोई, उसके गालों के घने अंधेरे पर एक चमकीले सपने की तरह आँसू बहेंगे।
चिन्मयी ने मेरे साथ यहाँ तक कि एक बार नरक में जाने का वादा किया था।
गली पार करने के बाद, मैं मुख्य सड़क पर पहुंच गया। तीन आवारा कुत्तों ने मुझे देखकर भौंकना शुरू किया। कॉन्वेंट के पास चर्च में कुछ नन प्रार्थना कर रही थी। दाहिनी ओर अनाथालय में कुछ लोग मोमबत्ती जला रहे थे। शायद सोते हुए अनाथ बच्चे नए साल के स्वागत में भजन गाने के लिए उठ गए होंगे।
मैं सोच रहा था कि मैंने जीवन की सबसे बड़ी गलती है। मुझे कम से कम एक बार चिन्मयी- छल की राजकुमारी का नग्न शरीर देखना चाहिए था।
मुझे मुख्य सड़क पर चलने में डर लग रहा था। कौन जानता है, कहाँ मुझे नया साल मिल जाए आवारागर्दी करते हुए - जेल के सामने, पार्क में या बाहर या किसी बंद सरकारी प्रेस के अंदर?
मैंने देखा, कुछ स्वयंसेवक एक बोरी में एक मृत शरीर को श्मशान की ओर ले जा रहे थे। इस समय कौन मर गया? पुराना साल? मैं सोच ही रहा था। लाश लिए वे करीब आ रहे थे।
तेज ब्लेड से उसकी पीठ, चेहरे, पैर, हर जगह पर काटने के निशान बने हुए थे। खून से लथपथ लाश को वे श्मशान की ओर ले जा रहे थे और हँस रहे थे। कौन जानता है, किसकी लाश थी वह? मैंने झाँककर देखा और मुझे लगा वह किसी परिचित की लाश थी। शायद अति परिचित। मानो आईने में छब्बीस साल से हर रोज उसके चेहरे को देखता आ रहा हूँ।
ओह, नहीं!
वे उसे खींच रहे थे और हँस रहे थे।

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