नन्ही काऊ मछली का साहस / रजनी कान्त मोहंती

रजनी कान्त मोहंती (1952)
पता:- झामराइपुर (बिजुपट्टनायक नगर ), महताब चौक के पास, भद्रक-756181 (ओड़िशा)
Email: rajanikanta_mohanty06 AT yahoo.co.in


पानी का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा था। नदी से बाढ़ का पानी तालाब में घुस रहा था। कुछ जगह लोगों में कानाफ़ूसी थी कि पानी ज़ोर से उफान पर है। तालाब बहुत पुराना था। अभी अभी एक तटबंध तालाब के चारों ओर बनाया गया था जिसकी वजह से उसका विस्तार बढ़ गया था। मगर तालाब के किनारे अमरी तथा कुछ जंगली झाड़ियां उसकी सीमा बनकर खड़ी हुई थीं। तालाब के स्नानघाट के काफ़ी नजदीक में ताड़ के पेड़ भी लगे हुए थे।
बाढ़ के पानी से तालाब छलक रहा था और ताड़-पेड़ों की जड़ें पानी में डूब गई थी। बाढ़ के पानी के साथ कई प्रकार की मछलियां, केकडें, साँप और छिपकलियां तालाब में बह रही थी और साथ ही साथ,कुछ मछलियां और अन्य जलीय जीव तालाब से खुले मैदान में बाहर निकल रहे थे बहुत लंबे समय से रह रहे अपने बंद निवास से! उन्हें अपने गंतव्य के बारे में कुछ भी पता नहीं था, लेकिन वह आजादी उन्हें रोमांचक लग रही थी! उफनते तालाब का पानी तरंगों के साथ आगे बढ़ता जा रहा था।
पास की दलदल झाड़ियों में रहने वाली एक छोटी काऊ मछली ने जब बाहर निकलकर तालाब के अथाह पानी को देखा तो वह बुरी तरह से डर गई। उसने अपनी जिंदगी में कभी भी इतना पानी भी और तरंगों को नहीं देखा था! ऐसे भी यह कोई जरूरी नहीं बढ़ती उम्र के साथ इन सारी चीजों और उनके प्रभाव की जानकारी प्राप्त की जाए। । उसे तो अपने इर्द-गिर्द के दलदल और उष्ण पानी की गरमाहट को छोडकर और किसी भी तरह की जानकारी नहीं थी। उसने कई बड़ी मछलियों जैसे केट-फिश, शेयतफिश (मगुरा) और चौड़े मुँह वाले साँपों जैसे ढांडा और कोचिया का भले ही सामना किया हो। मगर हर हाल में वह उनसे अपने आपको बचाने में भी सफ़ल रही। उसे इस बात का भी अहसास था कि उसके तेज पंख और गिलों ने उसे बचाने में भी बहुत मदद की हैं।
वह पानी से भरे लबालब तालाब में तैरने लगी और हवा के झोकों से पानी पर बन रहे वर्तुलों का मजा उठाने लगी। उसने कई बार पानी में डुबकी लगाई और पानी के धरातल को स्पर्श किया। बुजुर्ग मछलियाँ इस मछली का यह लापरवाह रवैया देखकर अचरज करने लगी। उनकी उम्र हो गई थीं झाड़ियों में बहुत लम्बे समय से, कीचड़ में छुपकर अपने आपको शिकारियों से बचाने का भी प्रयास करते-करते । उन्हें उसकी साहसिक गतिविधियों को देखकर डरने लगी थी और उसकी जिन्दगी के प्रति चिंतित रहने लगी। वे सोचने लगी कि नन्ही काऊ की बुद्धि काम नहीं कर रही है और शायद वह ऐसा सोच रही है जैसे सारी दुनिया उसकी मुट्ठी में हो।
कौन जानता है दुख की घड़ी कब आ जाए और किसके तेज़ दांतों का वह शिकार बन जाए। यह देख वे सब आह भरने लगे। और दुख की बात यह थी कि वह छोटी मछली अपने जीवन के खतरों से पूरी तरह अनजान थी। बीच में एक बार एक काली बालों वाली मछली ने काऊ के साहस को देखा और उसका पीछा करना शुरू किया मानो वह उस पर मंत्र मुग्ध हो गई हो। परंतु जल्दी ही वह थक गई और उसने उसका पीछा करना छोड़ दिया। तब उसने उसे अपने पास बुलाया और आगाह किया, “ मेरे बच्चे, यह केवल बाढ़ का पानी नहीं है, इसमें बड़े-बड़े साँप भी रहते है। जो हमारे तालाब में घुस आए है। अगर तुम असावधान रही तो कभी भी तुम्हारी जान जा सकती है। इस तरफ़ ध्यान दो।” मगर उस पर भी कहने का कोई असर नहीं पड़ा और वह दूर-दूराज धाराओं में तैरने लगी। उसके बाद वह एक कमल के लम्बे पत्ते पर उतरी। धूप में उसका नारंगी हरा रंग ज्यादा चमकने लगा।
तालाब में यह रंग सभी को आकर्षित करने लगा। सभी दिशाओं से सेउला,बलिया मछलियाँ और साँप कमल के पत्ते की ओर जाने लगे, काऊ की तलाश में। इससे पहले कि वे उसे अपना शिकार बनाते,वह गहरे पानी की ओर खिसक गई। कितना खतरनाक था देखना मनोहर और आकर्षक दृश्य! अब वह पूरी तरह से डर गई थी और धीरे धीरे चक्कर काटते ऊपर उठाने लगी। वह एक ताड़ के पेड़ के पास जाकर रूक गई जिसका तना पानी में डूबा हुआ था। वह राहत पाने के लिए उस तने पर चढ़ गई जो पानी के स्तर से ऊपर उठा हुआ था। उसकी पूंछ और पंख सभी थकावट के कारण सुन्न हो गए। वह स्थिर हो गई और जल्द ही नींद की आगोश में आ गई।
नींद के कारण उसमें नई ऊर्जा का संचार हुआ। मगर थोड़े समय वह यू हीं लेटी रही, अपनी पलकें झपकाते हुए चारों तरफ देखने लगी। उसने पानी की भंवर-धारा में एक साँप को देखा भी और उसे देखकर वह बुरी तरह से डर गई। उससे बचने के लिये काऊ मछली पेड़ के तने पर चढ़ने लगी, अपने पंखों के साथ संघर्ष करते हुए। उसे अपने साहस पर स्वयं को अचरज होने लगा। पंख की सहायता से रेंगना तो उसे आता था, लेकिन पेड़ पर चढ़ना! हर पर उसे कठिन लग रहा था। मगर अनुभव ने उसे कई नई चीजें सीखा दी थी। वह धीरे धीरे ऊपर चढ़ने लगी, उसमें आखिरकर एक नई ऊर्जा थी, अज्ञात, अनदेखी, अछूती, जो उसे एक भोले बच्चे की तरह रोमांचित कर देती थी। अपने बाल-हठ से वह एक नए जीवन और एक नई खोज की खुशी से प्रसन्नचित्त थी।
वह काऊ मछली और भी अधिक जिज्ञासु बनती गई। वह अपने पंखों की सहायता से और ऊपर उठी। और फिर, ऊपर। वह पानी के स्तर से छह इंच ऊपर चढ़ गई। बहादुरी का काम था यह! काऊ मछली का आत्म विश्वास बढ्ने लगा था। फिर वह पानी में नीचे उतर गई और उसके होठों पर एक मुस्कान खिल गई। 'जल मेरे लिए सब कुछ है. मैं इसी में पैदा हुई हूँ और एक दिन मैं यहीं मर जाऊँगी। और पानी ही मेरे लिए खेल का मैदान है, मेरे रहने और बढ़ने के लिए एक जगह है ... ... यह सब वास्तविकता है। .... यह सांसारिक जीवन है! जब इस तरह के विचार उसके मन में आए तो उसे तालाब बहुत छोटा लगने लगा,उसका महत्व और चमक काऊ मछली के लिए कम होती चली गई। और एक पेड़ के ऊपर चढ़ने का साहस उसे रोमांचित कर रहा था! बस,अपने परिचित पानी की दुनिया से दूर -जीवित रहने में सक्षम होने के भाव! उसके दिल में एक अजीब उत्साह भर गया था। उसकी कोमल त्वचा तने से घिसकर आवाज करने लगी थी। बिना विचलित हुए वह गंभीरता से प्रयास करने लगी।
और फिर वह और अधिक गंभीर हो गई। क्या वह वास्तव में चोटी तक पहुँच सकेगी? या कम से कम पेड़ पर चढ़ने के अनुभव के साथ पानी में गोता लगा सकेगी? उसने ऊपर देखा। पेड़ बहुत लंबा लग रहा था। वहाँ पहुँचने का मतलब अपने जीवन का जोखिम उठाना था। क्या उसमें इतनी शक्ति है, वह सोचने लगी? क्या इस तरह का जोखिम उठाना उचित होगा? पानी में कूदकर अपनी त्वचा बचाना क्या ज्यादा सुरक्षित नहीं है? तभी एक दूसरा विचार उसके मन में आया।
एक बुजुर्ग सिउला मछली जिसे वह धोखा देकर बच जाती थी,ने उसे धमकी भरे स्वर में कहा,” ठीक है, तुम इस बार तो बच गई। मगर बहुत दूर तक नहीं जा सकती हो। याद रखना, तुम अपना सिर तेल भरी कड़ाही में डाल रही हो! पता नहीं,कब समय आ जाए। क्या कोई भी मछली जानती है उसका समय पूरा हो गया। जब समय आएगा, अपने आप कांटे में फंस जाएगी। वास्तव में किसी को भी अपने भविष्य के बारे में पता है। क्या यह सत्य नहीं है – जाल में फसाने के कई यंत्र है जैसे – जिलालम,अंधिली,बाजा,पोहला,मुगुरा और बाँकी आदि। . पानी की मछली पानी में भी सुरक्षित नहीं है। भगवान ने मछली को इतना नाजुक क्यों बनाया है? जब नन्ही काऊ इन सब पर विचार कर रही थी कि उसने फिर से नीचे देखा। तालाब अभी भी लबालब भरा हुआ था, उस ऊंचाई से मछलियों बहुत छोटी दिखाई दे रही थी। अगर वह और ऊंची चढ़ती है तो वे और छोटी दिखाई देगी।
वह भाव-विभोर हो गई। अपने दिल में उठ रहे संदेह के कारण वह वहाँ रूक गई। क्या उसे और ऊपर उठना चाहिए या तालाब में सीधे गिर जाए? वह वहाँ और थोड़ी देर के लिए रूकी। एक बूढ़ी बालों वाली काऊ ने उसे पेड़ पर चढ़ते देखा तो दौड़कर उसकी तरफ जाते हुए चिल्लाने लगी, “ आप वहाँ ऊपर क्या कर रही हो, बच्ची? क्या आपको अपने जीवन से कोई प्यार नहीं है? यदि किसी बगुले, किंगफिशर या बाज की दृष्टि आप पर पड़ गई तो वह तुरंत आपको निगल जाएगा। बहुत चढ़ ली हो। अब वापस आ जाओ।“
नन्ही काऊ मछली ने उसे सुना, मगर फिर भी उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया। वह इतनी जल्दी अपनी हार स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थी। अगर वह अब इसे छोड़ देती है तो जीवन भर कुंठाग्रस्त रहेगी कि वहअपने मुकाम को पा नहीं सकी। ... अगर उसे जीना है, तो उसे बहादुर होना होगा तथा अपने मुकाम को हासिल करना होगा और अपनी विफलता का मज़ाक नहीं बनवा सकती। और लक्ष्य बहुत निकट लग रहा था, बहुत लुभावना! उसने कुछ भी नहीं कहा। फिर से बूढ़ी काऊ चिल्लाई, 'क्यों, क्या तुम मुझे नहीं सुन रही हो? हमारे वंश में हर कोई मेरी बात ध्यान पर देता है क्योंकि मैं समझदारी की बात करती हूँ। फिर भी, उसने चुप्पी धारण रखी। बाकी मछलियों ने जब तालाब में बूढ़ी मछली को चिल्लाते सुना तो एक स्वर में वे सब आँखें बाहर निकाल कर चिल्लाने लगी, “ वापिस आओ, पेड़ पर चढ़ना हम मछलियों के लिए संभव नहीं है। वापस आ जाओ। अपने जीवन को जोखिम में मत डालो।”
जब सब मछलियाँ एक साथ चिल्लाईं भी तो वह कुछ परेशान हो गई। फ़िर जब उसने अपनी तरफ ध्यान दिया तो वह खुश हो गई। उसने इतना ऊँचा चढ़कर सबका ध्यान आकृष्ट किया है! उसने घीसे-पीटे रास्ते छोड़ दिए और अपने लिए एक नए रास्ते की खोज की। वह और ज्यादा चुप नहीं रह सकती थी। अन्य मछलियों को, जो उसकी तरफ़ देख रही थी, उनको आश्चर्य-चकित करने के लिए एक इंच और ऊपर उठी। यह देख सभी दंग रह गए। बूढ़ी मछली ने भीड़ को संबोधित करते हुए कहा, ” भाइयों, हमारी बात की तरफ़ ध्यान न देकर इस मछली ने हमारी बेइज़्ज़ती की है। यह स्वच्छंद है, अभिमानी है और किसी को जवाब देने की जरूरत नहीं है। उसे अपने नतीजे भुगतने दो।”
सभी ने भी उनका साथ पक्ष लेते हुए कहा, “ठीक है।” हालांकि वे कठोर भाषा का उपयोग कर रही थी, कुछ मछलियों के दिल में उसके प्रति जलन थी। कुछ खुद को गालियां दे रही थी, 'यह बात मेरे दिमाग में क्यों नहीं आईं! मैं भी अपने पंखों की मदद से उस पेड़ भी चढ़ जाती! मैं भी इस तरह आकर्षण का केंद्र बन सकती! मैं भी एक नायिका बन जाती। ' इस ईर्ष्या की वजह से उनमें स्वाभाविक रूप से एक नकारात्मक रुख पैदा हुआ -' यह अच्छा हुआ कि मैंने ऐसा करने का प्रयास नहीं किया। मैं बच गई। मैं पेड़ की चोटी तक नहीं चढ़ पाती। मेरे पंख टूट जाते और या तो मैं पानी में गिर जाती या फिर दूसरे पक्षी मुझे छीनकर दूर ले जाते। पानी में पैदा हुए है, पानी में मर जाएंगे। आकाश को लक्ष्य क्यों बनाएँगे? ' जब वे इस प्रकार की बातें कर रही थीं, बूढ़ी काऊ चिल्लाई, ' वह हमारी बात नहीं मान रही है, हम उसे दंडित करेंगे।"
“ठीक, बिलकुल ठीक।“ सभी ने इस पर अपनी सहमति जताई। इसके द्वारा अपनी ईर्ष्या का बदला निकाला जा सकता था। उस बूढ़ी मछली ने अपने पंखों की सहायता से पेड़ पर चढ़ने की कोशिश की। बाकी काऊ मछलियों ने उसका अनुसरण किया। मगर मछलियों की दूसरी प्रजातियों ने उनका पीछा नहीं किया। वे अच्छी तरह से जानती थी कि अपने पंखों की सहायता से वे ऊपर नहीं चढ़ सकती है। उनका शरीर चिकना है। वे पानी के भीतर से ही आँखें बाहर निकालकर सारी गतिविधियां देखने लगी। जब छोटी काऊ ने बूढ़ी मछली तथा उसके पीछे दूसरी मछलियों को पेड़ पर चढते देखा, उसने सोचा वे उसका अनुसरण कर रही हैं। उसे बहुत अच्छा लगा और वह ज्यादा प्रोत्साहित हुई। मगर वे उसके मार्ग में रूकावट बनेगी तो? उनके खतरनाक इरादों से डर कर उसने अपनी गति बढ़ा ली। वह साहस के साथ आगे बढ़ती गई। उसके पीछे वह बूढ़ी मछली और उसका सारा खानदान। अब वह बहुत सावधानी से आगे बढ़ रही थी।
ताड़ का पेड़ कुछ जगह पर चिकना,फिसलनदार तो कुछ जगह पर खुरदरा और काँटेदार था। चिकने भाग पर चढ़ने में उसे बहुत दिक्कतें आ रही थी। वह जितना अच्छा कर सकती थी वह करने लगी, अपने शरीर का संतुलन बनाकर पेड़ के बड़े हिस्से को अपने पंखों से पकड़कर और फिर,शायद एक छलांग ऊपर लगा लेती। जितना ज्यादा वह प्रयास करती उतना ही उसकी पकड़ कमजोर होती जा रही थी। उसके नीचे झाँका। बूढ़ी काऊ और दूसरी मछलियों के नामो-निशान तक नहीं थे। वे चर्चा कर रहे थे कि इस घमंडी मछली का पीछा करना ठीक है या नहीं। ताड़ पेड़ के नीचे एक साथ सारी मछलियों को देख शिकारी पक्षी आकर्षित हो रहे थे, यहाँ तक कि बाज भी इर्द-गिर्द मंडराने लगे थे। बूढ़ी काऊ ने यह देख बाकी सभी को चेतावनी दी कि इस गुमराह बच्ची के चक्कर में कहीं वे अपनी जिंदगी तो दांव पर नहीं लगा देंगे। उसने गुस्से से छोटी काऊ को डांटते हुए कहा, “'वापस आओ, मूर्ख! तुरंत पानी में कूदो। ऊपर देखो, एक बाज़ तुम्हारा पीछा कर रहा है। ” उसके बाद उस बूढ़ी मछली ने मटमैले पानी में गोता लगाया और अपनी संगी-साथियों के साथ वहाँ से गायब हो गई।
जब उस मछली ने अपने पीछे किसी को नहीं आते देखा तो सोचा वे कायर उसे पकड़ने में असफल हो गए। फिर वह सोचने लगी हो सकता है वे सही हो। पहले अपनी जान बचानी चाहिए फिर किसी साहस का काम करना चाहिए। वह ऊपर आकाश की ओर देखने लगी। ऊपर बाज मंडरा रहे थे। अंतिम फैसला लेते हुए आखिर बार वह कूदी एक पत्ते पर और थोड़े समय रूक कर चैन की सांस लेने लगी। तीन चौथाई पत्ता अभी बचा हुआ था। पत्ते के नीचे का भाग सूखा हुआ था, बीच वाला भाग कमजोर एवं नीचे की ओर झुका हुआ था मगर ऊपरी भाग अभी भी सीधा और चमकदार था।
उसने बूढ़ी मछली से सुन रखा था कि चिड़ियाँ पत्तों के धागों से बुनकर अपने बच्चों के लिए एक मुलायम घर बनाती है। यह घोंसला हल्का होता है, और हवा में लटका हुआ होता है और बुनकर चिड़ियों के लिए एक झूलता हुआ घर होता है। तेज हवा, बारिश या तूफान से भी केवल हिल सकता है मगर टूटता नहीं है। कोई भी उनके घर को कुचल नहीं सकते है। लेकिन उन बुनकर पक्षियों के घोंसले कहाँ हैं? ताड़ के पत्ते से किसी भी घोंसले को न देख वह निराश हो गई। वह सोचने लगी वे सब कहाँ चले गए। तेज धूप थी, सूरज आकाश के बीच में था। तपिश के दिन थे। छोटी काऊ ने नीचे देखा। दूर से तालाब छोटा दिखाई दे रहा था, मछलियाँ बिलकुल नहीं दिख रही थी। केवल बीच बीच में बूढ़ी मछली मटमैले पानी से अपनी आँखें निकालकर ऊपर की ओर ताक रही थी।
सिउला, बलिया और अन्य मछलियों जो उसे जानती थी, उन्हें ताड़ पेड़ की उस ऊंचाई पर वह नजर नहीं आ रही थी। वे सोचने लगी, वह कहाँ गायब हो गई? अभी तक वह उनके आकर्षण का केंद्र बनी हुई थी। वे सोचने लगे कि क्या अभी तक वह पेड़ पर चढ़ रही है या कोई बाज जो उस पर आंखे गाड़े बैठे थे उसे उड़ा ले गए या चिलचिलाती धूप और तनाव सहन करने में असमर्थ होने के कारण वह पानी में गिर गई। सभी अपने अपने अनुमान लगा रहे थे। छोटी काऊ ने उनमें से किसी की भी बात नहीं सुनी, और अगम रास्ते पर जाने का दुस्साहस किया और इस कारण अभी भी वह दूसरों को अपनी खीचे रखी है। अब वे उसके भाग्य के बारे में जानने को उत्सुक थे। उनके दिलों में छुपी हुई घृणा और ईर्ष्या प्रशंसा में बदल रहे थे। अब नन्ही काऊ उनके वंश में एक मर्द के रूप में उभर सामने आ रही थी। वह उनकी ताकत का प्रतीक थी जिनकी उन्हें जानकारी तक नहीं थी। सभी भगवान से प्रार्थना कर रहे थे कि वह अपनी मंजिल पा लें। सभी उसकी सफलता के लिए शुभकामनाएँ दे रहे थे। मगर फिर भी, उसे क्या हुआ? वह कहीं पर भी दिखाई नहीं दे रही थी।
उस छोटी सी काऊ ने फिर एक बार ऊपर की ओर देखा। ताड़ पेड़ का चँदवा (वितान) अभी भी बहुत दूर था ....उसकी सारी आशाओं पर पानी फिर रहा था। क्या उसने इतनी बहादुरी दिखाकर कोई गलत काम तो नहीं कर लिया। वह और ऊपर उठी। इस तरह के एक अज्ञात पथ का उसे पहले से कोई अनुभव नहीं था, लेशमात्र हताशा का मतलब सभी चीजों का अंत। उसके सारे संदेह तुरंत दूर हो गए। उसकी थकान दूर हो गई और कम होती शक्ति में भी आशा की एक नई किरण दिखाई देने लगी। उसने ताड़ पेड़ की टहनियों से कुछ नम पानी और छोटे कीड़े और मुलायम पत्तियों के रस का स्वाद चखा। पेट में थोड़ा भोजन जाने से उसे अच्छा लगने लगा। अपने गलफड़ों को भी आराम मिला और अच्छी तरह सांस लेने लगी। उसके बाद, उसने एकचित्त ध्यान से पत्तियों की तरफ देखा। बिलकुल भी इधर उधर देखे बिना वह ऊपर चढ़ती जा रही थी। पत्तियों से छनकर आने वाली सूरज की किरणों से उसका शरीर चमकने लगा। तब नीचे से जानने वाले उसे पहचान पाए। वे खुशी में चिल्लाने लगे, “
देखो, हमारी बच्ची उधर जा रही है। हमारा सरताज। देखो,कैसे बहादुरी के साथ अपने कदम बढ़ा रही है। देखो........”
नन्ही काऊ मछली के साहस ने उनकी युवा पीढ़ी को प्रेरित किया। उनमें से कुछ ने अपने बुजुर्गों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल बजाया और अब स्वयं पेड़ पर चढ़ने का तय किया। उनमें से एक ने कहा, 'मैं जाऊँगी, मैं पेड़ पर चढ़ूँगी,क्या हम नहीं देख रहे है कि आप हमारे एक बहिन ने यह काम पूरा किया है? मैं उसके द्वारा दिखाए हुए रास्ते पर चलूँगी। .... ' जब वे इस प्रकार बड़बड़ा रही थी, बूढ़ी काऊ ने साधुवाद देते हुए कहा 'प्रयास करने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन कम से कम हम में से कोई एक तो पेड़ की चोटी तक पहुँचकर दिखाए। पहले केवल देखो। उसके बाद तुम भी कोशिश कर सकते हो। '
यह सुनकर दो मछलियाँ शांत हो गई। मगर एक अन्य ने कहा, “'नहीं, नहीं, मैं पेड़ पर अभी चढ़ूँगी। मुझे अपने बहिन से प्रेरणा मिली है जो पहले से ही पेड़ पर इतनी दूर जा चुकी है। जब वह मुझे अपने नक्शेकदम पर चलते हुए देखेगी तो उसे अच्छा लगेगा। वह रोमांचित हो जाएगी जब उसे पता चलेगा कि उसके वंश का कम से कम कोई और ऊपर चढ़ने का प्रयास कर रहा है। ” इससे पहले कि वह अपनी बात पूरी करती, दूसरों ने उसे बूढ़ी काऊ के निर्देशों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए उस पर आक्रमण कर दिया जिससे वह बूरी तरह घायल होकर बेहोश हो गई। उसके बाद वे सब पेड़ के तने पर निगरानी रखने लगे ताकि कहीं कोई और मछली ऐसी खतरनाक मूर्खता करने का प्रयास न कर लें।
इधर वह काऊ ऊपर ही ऊपर चढ़ती ही जा रही थी। कभी अपने दाहिने पंखों से तो कभी अपने बाएँ पंखों से। बहुत ज्यादा मेहनत के कारण उसके पंख दर्द करने लगे थे। मगर वह आगे बढ़ती जा रही थी। उसका ध्यान और कहीं नहीं था। किसी भी तरह पेड़ के शीर्ष पर पहुँचना ही अब उसका जुनून बन गया था। अब यह जीवन का एक मात्र लक्ष्य था। कभी कभी ताड़ के पत्तों से फुसफुसाने की आवाज आ रही थी। उसे किसी से भी मतलब नहीं था। आकाश में बाज और किंगफिशर नीचे नीचे गोलों में मंडरा रहे थे मगर उसे किसी से भी कोई डर नहीं था।
नीचे तालाब में बची हुई मछलियाँ उसकी गतिविधियों पर ध्यान रखे हुए थी। लेकिन वे अपने विचारों में मशगूल थे। उसके लिए अपने मुकाम पाने के लिए एक जुनून सवार था - जीवन और मौत का संघर्ष। उसकी भूख और प्यास भी उसके लिए कोई मायने नहीं रखती थी। वह इस बात को भूल गई थी कि वह एक जलीय जीव है। उसके पंख इतने लंबे समय तक पेड़ के तने से रगड़ खाकर लहूलुहान हो गए थे। उसके जल्दबाजी की वजह से खून की एक बूंद गर्दन से निकलकर उसके पेट को छूने लगी। बाद में उसे इस बात का एहसास हुआ कि बाद में और ज्यादा खून निकल सकता है। जैसे ही यह हुआ, ताजे खून की गंध ने शिकारी मछलियों जैसे केट फिश, शीट फिश और उस जगह मौजूद बूढ़ी काऊ का ध्यान आकर्षित किया। बूढ़ी काऊ मछली को तुरंत पता चल गया कि वह उस छोटी काऊ मछली का खून है और उसने ने अंदाज लगाया कि पेड़ के ऊपर उसकी हालत बहुत खराब है। उसकी जिंदगी घातक अवस्था में है। मगर, जैसे ही वह उस स्थान तक पहुंचती, जहां खून की बूंदें गिरी थी, केट-फिश उस तरफ भागी और तुरंत उसे चाटते हुए कहने लगी, “वह सोच रही थी वह इस तालाब की नायिका बनेगी। देखो, खून की बूंदें.....” वह व्यंग में अपनी पूंछ से पानी उड़ाते हुए इधर उधर तैरने लगी।
मगर इससे से नन्ही काऊ विचलित नहीं हुई। वह घूम गई और शरीर के दूसरी और के गलफड़ों की सहायता से चढ़ना जारी रखा। उसके शरीर से बहुत ज्यादा खून निकाल रहा था और सारा शरीर दर्द से कराह रहा था। सुबह की धूप निकली थी। वह भयंकर तनाव के साथ अपने को रगड़ते हुए रेंग रही थी और उसके मुंह से एक दर्द भरी आह निकली। उसका मुंह खून से लथपथ था। गलफड़े फट गए थे। खून पानी में गिरने लगा। और कोई आशा नहीं बची थी। मगर उसने किसी भी तरह ऊपर चढ़ने का दृढ़ निश्चय किया था। उसने आखिर प्रयास करने का जोखिम उठाया और आगे कूदकर अपने आप को ताड़ के पेड़ से छिपकाते एक क्षण राहत की सांस लेने के लिए रूकी। वह खून से लथपथ थी। लक्ष्य प्राप्त होता हुआ नजर आ रहा था। फिर उसने एक बार नीचे देखा। उस ऊंचाई से सब जगह पानी धुंधला लग रहा था। वह बूढ़ी काऊ और सभी दोस्त मछलियों को भूल चुकी थी, केवल उनकी यादें बची हुई थी।
पानी के अंदर काऊ मछलियाँ बहुत संख्या में इकट्ठी हो गई थी, और उन्हें वह छोटी काऊ मछली नजर नहीं आ रही थी। वे केवल उसका गिरता हुआ खून देख रही थी। उन्हें पूरा विश्वास हो गया था कि वह अब और नहीं बच पाएगी। एक ऊंचे पेड़ पर चढ़ने के साहसिक काम का यह दुखद अंत होगा। बूढ़ी काऊ ने सभी को चेतावनी दी। दूसरी काऊ मछ्ली जो ऊपर चढ़ने के लिए जिद्द पकड़ रही थी, अभी शांत हो गई थी। उनमें से सभी गंभीर हो गए थे,और इस घटना पर अपने विचारों में खो गए थे। कुछ ही समय में उस साहसी काऊ मछली के विचार ध्यान से उतर गए।
जब छोटी काऊ आराम करते हुए चारों तरफ आँखें घूमा कर देखने लगी। दुनिया इतनी बड़ी है! वह सोचती रही जब तक उसकी आँखें क्षितिज को नहीं देखने लग गई। और उससे ऊपर, एक विशाल क्षेत्र –कई द्वीप, अंतहीन पेड़ और उनके छोटे तालाब की सरहद के पीछे लाखों लोगों की आशाओं से भरा आकाश! इस सत्य के उजागर होने से वह बहुत अच्छी थी। क्या वह सारा जिंदगी अगर तालाब में रहती तो क्या इस सौंदर्य के बारे में जान पाती? अपने सपनों में भी वह कभी ऐसे सुंदर सपने नहीं देख पाती।
दोपहर का सूरज लुप्त होने लगा था, तपती धूप भी नरम पड़ने लगी थी। अंतिम छलांग के लिए उसने अपने आपको तैयार किया। गलफड़ों से निकलने वाला खून सूखकर काला हो गया था। डर से उबरकर पेड़ के तने पर उसने अपना दबाव डाला। छिले हुए गलफड़े और छिल गए तथा लगातार उनसे खून बहने लगा। मंजिल बहुत नजदीक दिख रही थी। वह दूसरी तरफ मुड़कर गलफड़ों की सहायता से संघर्ष करने लगी। इधर से भी खून बहने लगा। मुंह खून से पूरी तरह भर गया। सारा शरीर दर्द से कराहने लगा था। सारी ताकत लगाकर उसने आगे की ओर छलांग लगाई। अब उसे ताजे हवा की सांस लेने में परेशानी होने लगी, उसके टूटे गलफड़े और सहयोग नहीं कर रहे थे। अचानक उसका नियंत्रण खो गया और वह वहाँ से तालाब में गिर गई। लगातार खून बहने से वह बेहोश होकर गिर गई।
जब उसका निर्जीव शरीर पानी में गिर गया तो सारी मछलियाँ वहाँ इकट्ठी होकर चिल्लाने लगी, “ अरे! यह तो वही काऊ मछली है जो पेड़ पर चढ़ी थी। उसे पेड़ के शीर्ष पर चढ़ने का अनुभव है और बहुत सारे अनुभव ..... यह लाखों में एक है, अद्वितीय है... ” और इससे पहले कोई शिकारी पक्षी, बाज या कौए पानी पर तैर रहे उसके कीमती मांस के लिए गोता लगाते, पानी में लड़ रही लोभी मछलियों ने उसे पकड़ लिया ताकि अपनी जाति का खून चख सके, जो इतने नाम के बाद जरूर बदल गया होगा। एक लंबे समय तक उनके दिलों में छुपी ईर्ष्या ने अब एक दुर्भावनापूर्ण मोड ले लिया था और उनके दृष्टिकोण में द्वेष की भावना घर करने लगी थी। उसने हमें नजरअंदाज करने का दुस्साहस किया और पेड़ पर चढ़ने की हिम्मत की। वे पहले इतने हिंसक कभी नहीं हुए थे। मारधाड़, हल्लागुला और हंगामों के बीच उन्होने उस छोटी मछली के मांस को तब तक निगला जब तक कि उसका कंकाल नीचे और नीचे अथाह गहराई में डूबता चला गया।

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