साहड़ा-सुंदरी / देबब्रत मदनराय
देबब्रत मदनराय (1957) जन्म-स्थान:- बिहारी बाग, कटक-2 प्रकाशित गल्प-ग्रंथ:- चित्रमाटी, महादेवी, प्रियसाखी, असुंदरी, सहयात्री, सप्तलोक, स्वर्गारोहण, जलपरी, सारी रति जन्ह राति, दृश्य, कन्यारे बंशी। सवारी से उतरकर जब कमला ने पहली बार दुल्हन के रूप में अपने ससुराल के गांव की मिट्टी पर कदम रखा, उस समय वहाँ एकत्रित महिलाएं उसके पैर देखकर कहने लगी कि उन्होने अपने जीवन में इस तरह के सुंदर देवी लक्ष्मी जैसे पैर कभी नहीं देखे! उनकी बातचीत का केन्द्र कमला के अलता रंग से रंगे गोरे पाँव थे। उसी समय शंख-ध्वनि और हुलहुली सुनाई पड़ने लगी। तभी कोई हाथ पकड़कर उसे एक कमरे में ले गया । उसके सिर पर एक हाथ लंबा घूंघट था। वह किसी को भी नहीं देख सकती थी। वह केवल सुन सकती थी उनका हंसी मज़ाक और बातचीत। वह डर गई, जब अचानक किसी ने उसके घूंघट को पीछे की ओर खींच लिया। सुंदर पान के पत्ते के आकार का चेहरा। बादामी आँखें और लाल होंठ। गोरे चेहरे के माथे पर चमक रहा था लाल सिंदूर। वह था कमला का चेहरा। इस अपरिचित माहौल में वह पसीने से तर-बतर हो गई। 'आप लोगों ने नई दुल्हन के पास भीड़ क्यों जमा रखी है? इतनी दूर से ...