चंद्रशेखर रथ (1928) जन्म-स्थान:- बलांगीर प्रकाशित-गल्पग्रंथ-“अश्वारोहीर गल्प’,1979,”सम्राट ओ अन्यमाने “*1980,क्रितदासर स्वप्न’,1981,”सबुठारू दीर्घ रात्रि “,1984, “सबुजाक स्वप्न“,1984, “अश्रुत स्वर ‘,1989, “एते पखरे समुद्र “,1989, ‘बाघ सवार “,1996 इत्यादि-समुदाय 15 किताबें। छोटे पुत्र की नई उगती हुई दाढ़ी पर जोर से थप्पड़ मारते हुए बलभद्र रायगुरु गरजने लगा- “चुप बेनालायक इडियट कहीं के तुझे आखिरकर मेडिकल लेना होगा। डाक्टर नहीं तो क्या जूलोजी पढ़कर मास्टर बनेगा? मारूंगा जोर से कि सारे दांत निकल जाएँगे। जाओ, आज अपना आवेदन पत्र जमा करवाकर आओ।” धोती, कुर्ता और पुराने जमाने के काले चमड़े की चप्पलें पहनकर वह तेजी से अपने सोने के कमरे में चले गए। बूबू को कई दिनों से शेर का सपना आ रहा है। धब्बेदार चादर ओढ़कर बाघ मुंह फाड़कर उसे खाने आता था। कभी-कभी उसे पान चबाने वाले मुंह की तरह दिखता था। उसका मुंह मानो एक हिंगुल गुफा हो। उसके भीतर कड़कड़ाहट के साथ बिजली गिरने की आवाज सुनाई पड़ती थी। पसीने से तरबतर होकर बूबू अंधेरे की ओर भागता और उसके पीछे-पीछे दौड़ता वह बाघ। अनेक बार उसने देखी थी उस बाघ...
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